शायरी ऐ महताब
Tuesday, December 27, 2011
तेरे ख्वाब
दिल के गुलिस्तान में फूल जितनी हैं
तेरे ख्वाब मेरे दिल में बिखरे हैं
जाना चाहू तेरी निग़ाहों से दूर
क्या करे दिल की आदत से मजबूर हैं
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment