शायरी ऐ महताब
Monday, December 19, 2011
उड़ान
ना फ़िक्र करो बीते लम्हों की
की कल का सूरज निकलना बाकी है
मिल जायेंगी मंजिलें आपको हमेशा
की आपके हौसलों की उड़ान बाकी है
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