शायरी ऐ महताब
Thursday, December 8, 2011
मोहब्बत
नहीं शौक किसी का न ख़ाहिश किसी की है
तेरी निघाहों के निघह्बन हम यहीं है
बीत जाए चाहे ये ज़माना कभी
तुम हमारे दिल में हम तेरे दिल में है
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