शायरी ऐ महताब
Thursday, October 20, 2011
फलसफा
बरसने दो आसमान से आग के शोले
के सीना मेरा अभी चलनी न हुआ
गम के घूँट क्या पिलाएगा ये ज़माना
के पैमाना मेरे सब्र का छलका ही नहीं
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